चने की खेती सभी प्रकार की मध्यम से भारी भूमि मे की जा सकती है। उदासीन मृदा (6.5 से 7.5) चने की खेती के लिए उपयुक्त होती है। खेत की तैयारी के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करे। इसके बाद दो या तीन बार कल्टीवेटर चलाना चाहिए। जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाये। चने के लिए अधिक महीन मिट्टी तैयार करना आवश्यक नही है। हल्के ढेलो वाली भूमि मे चने की फसल अच्छी होती है। खेत मे जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय भूमि मे पर्याप्त नमी होनी चाहिए। अतः यदि खेत मे नमी कम हो तो खेत की तैयारी पलेवा करने के बाद करनी चाहिए।
बुवाई का समय-
सामान्यतः चने की बुवाई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक होता है। सिंचित खेती के लिए नवम्बर अंत तक बोवाई कर सकते है। जिन खेतो मे उकठा रोग का प्रकोप अधिक होता है वहाॅ गहरी व देर से बुवाई करना लाभदायक रहता है (ठंडा मौसम आने पर ) खरीफ मे ज्वार उगाये गये खेत मे उकठा का प्रकोप कम रहता है।
बीज की मात्रा एवं बुवाई की विधि- देशी चने की बुवाई के लिए 75 से 80 कि.ग्रा. व बडे बीज / काबुली चने/देरी से बोने के लिए 80-100 कि.ग्रा बीज प्रति हैक्टयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
अधिकतम पैदावार के लिये चने की बुवाई सदैव कतार मे करनी चाहिए। देशी चने मे कतार से कतार की दूरी 30 सेमी तथा काबुली चने मे 30-45 सेमी रखना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखना चाहिए। सिंचित क्षैत्र मे 5-7 सेमी व बारानी क्षैत्रो मे संरक्षित नमी को देखते हुए 7-10 समी गहराई तक बुवाई कर सकते है।