कीट एवं रोग नियंत्रण
प्रमुख कीट -
दीमक- यह कीट फसल को उगने से कटने तक की अवस्था में कभी भी नुकसान कर सकता है। बचाव हेतु 450 मिली. क्लोरोपायरिफाॅस को आवष्यकतानुसार पानी में घोलकर 100 किलो बीजों पर समान रूप से छिड़ककर बीजोपचार करें। खड़ी फसल में क्लोरोपारिफाॅस कीटनाषी 4 लीटर/हैक्टेयर सिंचाई के साथ बूंद-बूद दें।
शूट फ्लाई- यह कीट तने को नुकसान पहूॅचाता है। इससे बचाव के लिये मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर तक बुवाई करें। अंकुरण के समय कीट दिखाई देने पर मोनोक्रोटोफास 500 मिली या फोजोलोन 750 मिली./हैक्टेयर 700-800 पानी में घोल बनाकर फसल अंकुरण के 3-4 दिन के अंदर छिड़काव करे।
चैपा व तैला - यह कीट फरवरी मार्च के महीने में फसल में पत्तियों व बालियों से रस चूसते है। इसके प्रकोप से पत्तियां पीले रंग की पड़ जाती है और दानों का आकार छोटा रह जाता है। बचाव हेतु डायमेथोएट एक लीटर 700-800 पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर फसल पर छिड़काव करे।
मकड़ी - मकड़ी दिखाई देने पर फार्मोथियान या मिथाइल डिमेटान एक लीटर/हैक्टेयर फसल पर छिड़काव करे।
सैन्य कीट व पायरिल्ला - इनकी रोकथाम के लिये मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें या फैन्थियान 750 मिली. 700-800पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करे।
प्रमुख रोग
पीली रोली- इसमें पत्ती की उपरी सतह पर पीले रंग की छोटे फफोलों की कतारें बन जाती है जो बाद में पत्ती की निचली सतह पर काले रंग के हो जाते है। बचाव हेतु रोगरोधी किस्मों डब्लू.एच-157, 291 तथा अर्जुन की बुवाई कवेम रोग का प्रकोप नजर आने पर गंधक चूर्ण 25 किग्रा./हैक्टेयर फसल पर भुरकाव करें या 2 किग्रा. मैन्कोजेब/हैक्टयेर 700-800 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।
झुलसा व पत्ती धब्बा – इस रोग का प्रकोप जनवरी माह में दिखाई देता है अतः 15दिन के अंतराल पर 2.5 किग्रा. मैन्कोजेब 700-800 पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर जनवरी में छिड़काव कवेम
छाछया- पत्तियों पर सफेद या मटमैले रंग का चूर्ण दिखाई देने लगता है। रोकथाम के लिये 2.5 किग्रा. घुलनषील गंधक 700-800 पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव कवेम
अनाकृत कण्डवा- इस रोग में बालियों में दाने की जगह काला सा चूर्ण बन जाता है। रोगी पौधों में बालियों के निकलने से पूर्व उपरी पत्ती पीली हो जाती है। बचाव हेतु तेज धूप में बीज को पानी से निकालकर पतली परत में सुखायें। बुवाई पूर्व बीज को वीटावैक्स या कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करें। रोगग्रस्त पौधों की बाली को कागज अथवा पाॅलीथीन थैली से ढककर खेत से निकाल कर नष्ट कर दे।
करनाल बंट- यह रोग अधिक नमी वाले क्षे़त्रों में पाया जाता है। रोगी दानों का अंदर का भाग आंषिक अथवा पूरा काला पड़ जाता है। व इसमें सड़ी मछली जैसी गंध आती है। बचाव हेतु बुवाई पूर्व बीज को थायरम या कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करें। रोगरोधी किसमों डबलू.एच-263, 291, 523 व 711 की बुवाई करें।
सूत्रकृमि ममनी व टुण्डु – इन रोगों से ग्रसित पौधों के तने का आधार फूल जाता है। कुछ दिनों बाद पत्तियों पर झुर्रियां दिखाई देती है व पत्तें टेढ़े मेड़े हो जाते है। ममनी जिसे इयर कोकल भी कहते है। इससे ग्रसित बालियाॅ छोटी व मोटी हो जाती है व इनमें दानों के बजाय विकृत आकृतियाॅ जिन्हें गेगला या ममनी कहते है। बनती है। टुण्डु रोग में पत्तों, तनों व बालियों पर पीले रंग का चिपचिपा पदार्थ दिखाई देता है। यह एक जीवाणु होता है जो सुत्रकृमि के साथ रहता है और उपयुक्त मौसम में तेजी से बढ़ता है। रोगग्रसित बालियाॅ मुड़ी हुयी व बिना दाने की होती है बचाव हेतु प्रमाणित बीज बुवाई के लिये करें। बीज को 20 प्रतिषत नमक के घोल में उपचारित कर साफ पानी से धोकर छाया में सुखाकर बुवाई करें। घोल में उपर तैरते ममनीयुक्त बीजों को निकालकर नष्ट कवेम
मोल्या रोग- इसमें सूत्रकृमि पौधों की जड़ों पर आक्रमण करते है जिससे पौधे छोटे रह जाते है व पीले पड़ जाते है। ऐसे पौधों में फुटान कम होता है। बचाव हेतु फसल चक्र अपनावें। जौ कि मोल्या रोगरोधी आर.डी.2052, आर.डी.2503 किस्म काम में लेवें। फसल चक्र में चना सरसो, प्याज, मेथी, आलू, गाजर आदि बोयें। जिन खेतों में रोग का अधिक प्रकोप हो वहां खेतों में बुवाई से पूर्व कार्बोफयूरान 3 प्रतिषत कण 45 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि से उर कर बुवाई करें। बुवाई से पूर्व यदि यह उपचार नही किया तो शीर्ष जड़ जमने के समय पहली सिंचाई के साथ यह रसायन अवष्य दें।
ध्यान रखें- रसायनों के छिड़काव के तुंरत बाद वर्षा हो जाये तो उपचार को दोहराना चाहिये। यूरिया के घोल में जाईनेब/मैन्कोजेब मिलाकर भी छिड़का जा सकता है, ऐसा करने से अतिरिक्त खर्च व समय की बचत होती है।